
खटीमा: भारत विविधताओं का देश है. भले ही आज मॉल संस्कृति विकसित हो गई हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों में लगने वाले मेले, नुमाइस और हाट बाजार आज भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को प्रदर्शित करते हैं. उधम सिंह नगर जिले के खटीमा में भारत नेपाल सीमा पर गंगा स्नान से लगने वाले दस दिवसीय सिंघाड़ा मेला भारत ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल के सैकड़ों लोगों का भी पसंदीदा मेला है.
उत्तराखंड का अद्भुत सिंघाड़ा मेला: उत्तराखंड और यूपी के कई जनपदों से सिंघाड़ा व्यापारी परिवार सहित कई पीढ़ियों से अपने व्यापार को करने खटीमा के झनकईया इलाके में पहुंच रहे हैं. इस मेले में रोजाना आने वाले हजारों लोग पैसे से जहां सिंघाड़ा खरीदते हैं. स्थानीय काश्तकार एवं थारू जनजाति के लोग धान या अन्य फसलों के बदले सिंघाड़ा खरीद कर इसके स्वाद का लुफ्त उठाते हैं.
खटीमा के झनकईया में लगा है सिंघाड़ा मेला: ठंड के सीजन में गुनगुना सिंघाड़ा सभी को बेहद भाता है. सीजनल फल होने की वजह से बेहद कम समय के लिए बाजार में उपलब्ध होने वाला यह फल हर किसी के जीभ के स्वाद के लिए मयस्सर नहीं हो पाता. ठंड के शुरुआती सीजन में अगर सिंघाड़ा मेला लगे तो आप समझ सकते हैं कि इसका उस इलाके में क्या क्रेज होगा.
यूपी उत्तराखंड के व्यापारी लाते हैं सिंघाड़ा: सिंघाड़ा मेले में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अनेक काश्तकार अपने परिवार के साथ व्यापार करने खटीमा के इस प्रसिद्ध मेले में पहुंचे हैं. उत्तराखंड सहित उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, लखीमपुर और सीतापुर जनपदों के सिंघाड़ा व्यापारी तीन से चार पीढ़ियों से खटीमा के इस मेले में हर साल पहुंच रहे हैं. सिंघाड़ा मेले में प्रत्येक व्यापारी 25 से 30 कुंतल तक सिंघाड़ा बेच अपनी रोजी रोटी को चलाते हैं.
सिंघाड़ा मेले में नेपाल से भी आते हैं लोग: इस प्रसिद्ध सिंघाड़ा मेले में खटीमा के अलावा उत्तर प्रदेश एवं पड़ोसी देश नेपाल से हजारों लोग पहुंच अपने परिजनों के लिए स्वादिष्ट सिंघाड़े खरीद परिवार सहित इसका आनंद उठाते हैं. बीते चालीस से पचास सालों से इस मेले में अनवरत आ रहे सिंघाड़ा व्यापारी मेले में अच्छी बिक्री की बात कर उत्तराखंड के इस मेले की तारीफ करते हैं. वो कहते हैं कि इस मेले से हम अपने परिवार की गुजर बसर करते हैं.
20 रुपए किलो बिकता है सिंघाड़ा: खटीमा मुख्य नगर से मात्र 6 किलोमीटर दूर झनकईया नामक स्थान में घने जंगलों से गुजरने वाले राजमार्ग में लगने वाला यह प्रसिद्ध सिंघाड़ा मेला बड़ी संख्या में लोगों की पसंद है. लोग गुलाबी ठंड के इस सीजन में सिंघाड़ों का स्वाद लेने इस मेले में पहुंचते हैं.
इस मेले में 20 से 25 रुपए प्रति किलो तक सिंघाड़े बिकते हैं. इस जलीय फल को नकद पैसों के साथ-साथ धान या अन्य फसलों के बदले भी खरीदा जा सकता है. इससे स्थानीय थारू जनजाति के काश्तकार प्राचीन समय के वस्तु विनिमय का सुंदर उदाहरण इस आधुनिक युग में भी पेश करते देखे जा सकते हैं.
सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत है सिंघाड़ा मेला: मेले आज भी आधुनिक भारत के लाखों करोड़ों लोगों के मनोरंजन का साधन हैं. उत्तराखंड के खटीमा में लगने वाला सिंघाड़ा मेला भी इन्हीं में से एक है. इस मेले के माध्यम से एक ओर जहां व्यापार होता है, वहीं दूसरी ओर नेपाल जैसे पड़ोसी देश के लोगों से संबंध प्रगाढ़ होते हैं. इससे दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत साझा होती है. इसके साथ ही पीएम मोदी के वोकल फॉर लोकल के नारे को भी खटीमा का सिंघाड़ा मेला प्रोत्साहित करता है.
उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेले: उत्तराखंड अपने मेलों के लिए प्रसिद्ध है. यहां हरिद्वार में दुनिया का सबसे बड़ा कुंभ मेला मेला लगता है. राज्य के बागेश्वर का उत्तरायणी मेला बहुत प्रसिद्ध है. अल्मोड़ा के नंदादेवी मेले में बड़ी संख्या में लोग आते हैं. चंपावत के टनकपुर का पूर्णागिरि मेला उत्तर भारत के बड़े मेलों में एक है. चंपावत के ही देवीधुरा में लगने वाले बग्वाल मेले को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता होती है. देहरादून में लगने वाला सिखों का झंडा मेला भी अपनी विशेष पहचान रखता है. श्रीनगर गढ़वाल का वैकुंठ चतुर्दशी मेला भी काफी लोकप्रिय है. गैरसैंण के पाती मेले में काफी भीड़ उमड़ती है. गौचर के व्यापार मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं.
