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खटीमा में बाढ़ के बाद वन बस्ती में लोग रोटी-पकड़ा और मकान को तरसे, जानें हाल

खटीमा के चकरपुर स्थित वन रावत बस्ती में बाढ़ के चार दिन बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। इस बस्ती के करीब 40 परिवार अभी भी राहत शिविरों में रह रहे हैं। दोपहर में सभी लोग बाढ़ में बहे अपने बर्तनों और अन्य सामान ढूंढ रहे हैं।
रंज से खूगर हुआ इंसां तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसां हो गई … मशहूर शायर मिर्जा गालिब की यह पंक्तियां बाढ़ की विभिषिका झेल रहे खटीमा की वन रावत बस्ती के लोगों पर चरितार्थ हो रही हैं। बाढ़ के बाद जनजाति समाज की इस बस्ती में रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या खड़ी हो गई है। बाढ़ में झोपड़ियों, मवेशी व राशन बहने के बाद लोग भोजन के साथ-साथ सिर पर छत के लिए भी मोहताज हो गए हैं।खटीमा के चकरपुर स्थित वन रावत बस्ती में बाढ़ के चार दिन बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। इस बस्ती के करीब 40 परिवार अभी भी राहत शिविरों में रह रहे हैं। दोपहर में सभी लोग बाढ़ में बहे अपने बर्तनों और अन्य सामान ढूंढ रहे हैं। ये लोग भीगा गेहूं-चावल तो सुखा रहे हैं लेकिन सभी जानते हैं कि काला पड़ चुका यह अनाज अब खाने योग्य नहीं रहा। बाढ़ में बहने या अधिकतर हिस्से के क्षतिग्रस्त होने के कारण झोपड़ियां भी अब रहने लायक नहीं रह गई हैं। इन्हें दोबारा बनाने में समय और पैसे दोनों की जरूरत है। लोगों को अभी शासन-प्रशासन से किसी प्रकार की मदद तो दूर आश्वासन तक नहीं मिला है। लोगों के माथे पर भविष्य को लेकर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं। उनके पास अब शासन-प्रशासन के अलावा सिर्फ ईश्वर का सहारा है

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