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दून में मेट्रो, नियो नहीं अब बाई-आर्टिकुलेटेड बस चलाने की तैयारी, शुरुआत में बनेंगे दो कॉरिडोर

दून में अब बाई-आर्टिकुलेटेड बस चलाने की तैयारी है। यूकेएमआरसी ने इस साल अप्रैल में स्विस कंपनी एचईएसएस से करार किया। रिपोर्ट तैयारी की गई। अगले महीने शासन के सामने उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारी प्रस्तुतीकरण देंगे।

राजधानी में रैपिड ट्रांजिस्ट सिस्टम के तहत अब मेट्रो लाइट या नियो मेट्रो नहीं बल्कि बाई-आर्टिकुलेटेड बसें (द्वि-संयुक्त बसें) चलाने पर विचार हो रहा है। इसके लिए उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (यूकेएमआरसी) ने स्विस कंपनी एचईएसएस से गत अप्रैल में करार किया है।

इस कंपनी ने शहर में यातायात दबाव और पीक समय में यात्रियों की संख्या के हिसाब से अपनी विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार कर ली है। इस तरह की बसों का संचालन ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन, स्विट्जरलैंड और फ्रांस में किया जा रहा है। यूकेएमआरसी इस रिपोर्ट का प्रस्तुतीकरण अगले महीने शासन के सामने करेगा। गौरतलब है कि देहरादून में वर्ष 2019 में मेट्रो लाइट चलाने के लिए डीपीआर तैयार की गई थी। विशेषज्ञों ने लागत और शहर के हालातों के आधार पर मेट्रो लाइट को देहरादून के लिए लायक नहीं पाया।

बाई-आर्टिकुलेटेड बसें चलाने का प्रस्ताव रखा
इसके बाद वर्ष 2020 में रोपवे सिस्टम की डीपीआर तैयार की गई मगर आवासन शहरी कार्य मंत्रालय ने कम यातायात वाले शहरों के लिए मेट्रो नियो का मानक जारी किया। यह पीक ऑवर पीक डायरेक्शन ट्रैफिक (पीएचपीडीटी) के आधार पर था। इस पर यहां पर मेट्रो नियो चलाने पर विचार किया गया और वर्ष 2022 में इसके लिए नासिक मॉडल पर डीपीआर तैयार की गई। इसे केंद्र सरकार की स्वीकृति के लिए भेजा गया।

केंद्र सरकार ने मई 2025 में प्रस्ताव को यह कहकर लौटा दिया कि इतने यातायात को ई-बसों और बस रैपिड ट्रांजिस्ट सिस्टम (बीआरटीएस) से संभाला जा सकता है। इस पर यूकेएमआरसी दूसरे विकल्पों पर विचार करने लगा। इसी बीच यूकेएमआरसी से स्विट्जरलैंड की एचईएसएस कंपनी ने संपर्क किया और अपनी बाई-आर्टिकुलेटेड बसें चलाने का प्रस्ताव रखा।

कंपनी ने यूकेएमआरसी के अधिकारियों के साथ मिलकर मेट्रो, रोपवे और नियो मेट्रो की तुलना करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। शासन के सूत्रों के मुताबिक यूकेएमआरसी के अधिकारी अगले महीने इस प्रस्ताव को मुख्य सचिव के सामने रखने वाले हैं। शासन से मंजूरी के बाद इसे फिर से केंद्र सरकार के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।

यह होती है बाई-आर्टिकुलेटेड बसें

यह बैटरी से संचालित होती हैं। इसमें दो कोच (बसें) एक साथ जुड़ी होती हैं। इसमें फ्लैश चार्जिंग यानी तेजी से चार्ज होने वाली तकनीक होती है। शहर में इसकी गति 30 से 40 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी। यह सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल होगी। तीन देशों में इस तरह के सिस्टम का संचालन हो रहा है। हाल ही में लेटिन अमेरिका में भी इस तकनीक का परीक्षण किया गया है।

दो कॉरिडोर में 40 फीसदी आबादी होगी शामिल

बाई-आर्टिकुलेटेड बसों के रूट के दो कॉरिडोर बनाए जाएंगे। इनसे सीधे तौर पर 42 वार्डों की 40 फीसदी आबादी को कवर किया जा सकता है। इसके बाद विक्रम, मैजिक और अन्य प्राइवेट रैपिट ट्रांजिस्ट सिस्टम से जोड़कर इसके माध्यम से 75 फीसदी आबादी को सेवाएं दी जा सकती हैं।

देहरादून में मेट्रो से सस्ती मगर रोपवे से महंगी होगी नई प्रणाली

बाई-आर्टिकुलेटेड बस सिस्टम इलेक्ट्रिक रैपिड ट्रांजिट (ई-आरटी) प्रणाली के तहत आता है। यह प्रणाली मेट्रो से सस्ती होगी लेकिन रोपवे से लागत अधिक होगी। शासन के सामने प्रस्तुत करने को तैयार की गई रिपोर्ट में इसके प्रति किलोमीटर खर्च का विवरण नहीं है मगर इसकी संभावना जताई गई है। इसके खर्च का आकलन नियो मेट्रो से भी अधिक लगाया गया है। यह पूरी तरह इलीवेटेड कॉरिडोर पर चलेगी। इसमें आधुनिक स्टेशन, फ्लैश चार्जिंग प्रणाली और हाई कैपेसिटी इलेक्ट्रिक बसें शामिल होंगी। कंपनी के विशेषज्ञों ने इसके रखरखाव के खर्च को मेट्रो और नियो मेट्रो दोनों से कम रहने की संभावना जताई है।

ये हैं पहले की प्रणालियों की डीपीआर

मेट्रो लाइट-(2019 डीपीआर) : 91 करोड़ रुपये/किमी (देहरादून कॉरिडोर के लिए 110 करोड़ रुपये/किमी)

रोपवे (2020 डीपीआर): 103 करोड़ रुपये /किमी (2021 स्तर) और 126 करोड़ रुपये /किमी (2025 स्तर)

मेट्रो नियो:(अनुमानित 40–50 करोड़/किमी, नासिक के डीपीआर के आधार पर)

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