
देहरादून: शहर में बन रही ग्रीन बिल्डिंग शहर के लिए सिर दर्द बनती जा रही है. अक्टूबर में जिस बिल्डिंग को राज्य सरकार को हैंडडोवर होना था, उसका अभी तक 30 फीसदी काम भी पूरा नहीं हो पाया है. 206 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली इस बिल्डिंग की एक छत के नीचे ही तमाम विभागों के मुख्यालय तो आने ही थे, साथ-साथ 800 गाड़ियों की पार्किंग भी शहर के बीचों-बीच बनने से जाम और आम जनता को भी काफी सहूलियत मिलेगी. स्मार्ट सिटी में इस बिल्डिंग को बनाने का काम केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) को दिया है. लेकिन आलम यह ये है कि लेटलतीफी के कारण इसकी कॉस्ट बढ़ती जा रही है.
इस मामले पर अब विपक्ष में बैठे विधायकों ने भी मामले को लेकर राज्य सरकार और विभाग को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है. विधायक उमेश शर्मा ने कहा है कि राज्य में आज भी कई ऐसे विभाग हैं, जो किराए के भवन में चल रहे हैं. लेकिन जिस बिल्डिंग को अक्टूबर में पूरी तरह से बन जाना चाहिए था, वह अभी 30 प्रतिशत भी नहीं बनी है. अब इस भवन निर्माण में भ्रष्टाचार की बु आ रही है.
उत्तराखंड की एकमात्र बिल्डिंग जो अभी तक प्रदेश में कहीं नहीं बनी, उसे राजधानी देहरादून के पुराने रोडवेज बस डिपो के स्थान पर बनाया जा रहा है. यह बिल्डिंग अपने शुरुआती चरण से ही विवादों में है. काम की लेटलतीफी और स्थानीय लोगों की नाराजगी के कारण बिल्डिंग विवादों में है. राज्य स्थापना दिवस तक इस बिल्डिंग को पूरी तरह से बन जाना चाहिए था, लेकिन अभी तक इसका बेसमेंट का निर्माण चल रहा है. जीएसटी और अन्य खर्चों को मिलाकर कुल 246 करोड़ रुपए में बिल्डिंग तैयार होनी थी. लेकिन अभी भी इस बिल्डिंग का निर्माण कछुआ की चाल से चल रहा है.
विधायक उमेश शर्मा ने राज्य सरकार पर हमला करते हुए कहा है कि राज्य सरकार को यह देखना चाहिए कि आखिरकार शहर के बीचों-बीच अगर निर्माण में इतनी देरी हो रही है तो राज्य के अन्य इलाकों में चल रही सरकारी योजनाओं का क्या हाल होगा. उन्होंने नसीहत दी कि राज्य सरकार और संबंधित विभागों को इस मामले में और गंभीर होना पड़ेगा. तभी आने वाले एक-दो साल में यह बिल्डिंग बनकर तैयार होगी. विधायक उमेश ने कहा है कि वह इस मामले में जल्द मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात करेंगे.
इस बिल्डिंग के निर्माण और देरी को लेकर देहरादून जिलाधिकारी नमीन बंसल ने कहा कि यह बात सही है कि बिल्डिंग के निर्माण में काफी देरी हो चुकी है. संबंधित संस्था सीपीडब्ल्यूडी लगातार यह प्रयास कर रही थी कि मिक्सर प्लांट को लगाने की अनुमति कैंपस में ही दे दी जाए, लेकिन पर्यावरण और अन्य पहलुओं को देखते हुए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने अभी तक परमिशन नहीं दी है.
हमारी इस मुद्दे पर लगातार बातचीत चल रही है. 206 करोड़ रुपए की इस परियोजना में अब जितना भी अतिरिक्त खर्च आएगा. या तो सीपीडब्ल्यूडी देगी या फिर संबंधित ठेकेदार से वसूला जाएगा. राज्य सरकार अब इसमें और अतिरिक्त पैसे नहीं देगी. क्योंकि अगर काम देरी से हुआ है तो इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार या स्मार्ट सिटी की नहीं है. जिलाधिकारी ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती जाएगी.
