पिछले 8 सालों से उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन मेट्रो के नाम पर एक इंच भी धरातल पर काम नहीं कर पाया है. वहीं अब केंद्र सरकार ने भी देहरादून के बहु प्रतीक्षित मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं. क्या है उत्तराखंड के अधर में लटके पहले मेट्रो प्रोजेक्ट्स की कहानी आई जानते हैं.
हरीश रावत सरकार में शुरू हुई उत्तराखंड में मेट्रो की कवायद: पिछले एक दशक से उत्तराखंड के लोगों को मेट्रो प्रोजेक्ट का सपना दिखाया जा रहा है. जिसको लेकर साल 2017 में उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन बोर्ड का गठन भी किया गया था. उत्तराखंड मेट्रो बोर्ड के पहले अध्यक्ष के रूप में दिल्ली मेट्रो से एक अनुभवी अधिकारी जितेंद्र त्यागी को मेट्रो कॉरपोरेशन का एमडी भी नियुक्त किया गया. उत्तराखंड में उस समय हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. उस समय उत्तराखंड के लोगों ने मेट्रो को लेकर अपने मन में जितने भी सपने बुने, वह आज तक केवल सपने ही रह पाए हैं.
भाजपा की सरकार में नहीं हुआ मेट्रो का काम: 2017 विधानसभा चुनाव के बाद उत्तराखंड में भाजपा की सरकार आई. इस दौरान मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर कुछ ना कुछ चर्चाएं होती रहीं, लेकिन धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आया. मेट्रो प्रोजेक्ट की विजिबिलिटी और रिलायबिलिटी को लेकर कई बार अलग-अलग स्तर पर चर्चा हुई. कई बार देहरादून में अन्य ट्रांसपोर्ट सिस्टम के विकल्पों को लेकर भी शासन और सरकार के स्तर पर चर्चाएं हुईं. इतना ही नहीं उत्तराखंड में सरल पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था देने को लेकर के सरकार के कई दल विश्व के अन्य ऐसे शहरों में भी गए, जहां पर देहरादून जैसी परिस्थितियां हैं. लेकिन इतनी कवायद के बावजूद उत्तराखंड के तमाम मेट्रो प्रोजेक्ट जिनमें देहरादून ऋषिकेश और हरिद्वार शहर शामिल हैं, वहां अब तक मेट्रो के नाम पर एक नई ईंट तक नहीं लग पाई है.