
उत्तरकाशी: बाईस सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित स्योरी फल पट्टी मे सूखे की वजह से काश्तकार चिंतित है, काश्तकारों को पौधों की काट छांट तथा थाले बनाने में परेशानी हो रही है. वहीं, किसानों की मटर और गेंहू की फसल इस वर्ष सूखे की चपेट में आ गई है. समय पर बारिश न होने से खेतों में नमी का अभाव बना हुआ है, जिससे बोई गई फसलों का अंकुरण प्रभावित हो रहा है और कई स्थानों पर फसल सूखने लगी है.
जनपद में पिछले तीन माह से क्षेत्र में बारिश नहीं हुई है, जबकि दिसंबर का महीना आधा बीत चुका है. काश्तकारों का कहना है कि बगीचों में सेब की नई पौध लगाने की तैयारी में है किंतु सख्त हुई मिट्टी में गड्ढे बनाने में दिक्कतें आ रही हैं. स्योरी फल पट्टी में करीब बारह सौ परिवारों के सेब के बगीचे हैं, जिन पर उनकी आजीविका टिकी हुई है, स्योरी फल पट्टी में करीब डेढ़ लाख पेटियों का उत्पादन होता है, लेकिन समय पर बारिश और बर्फबारी न होने से लगातार उत्पादन पर असर दिखाई दे रहा है.
साल 2025 में स्योरी फल पट्टी में पच्चीस प्रतिशत उत्पादन भी नहीं हो पाया था, इस वर्ष भी मौसम की बेरुखी काश्तकारों की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है. दिसंबर माह में सेब बागवान बगीचों में पौधों की काट छांट कर पेस्ट लगाना, पौधों को गोबर की खाद देना, नई पौध लगाने के लिए गड्ढे बनाने का कार्य करते हैं, किंतु दिसंबर माह में भी बारिश नहीं हुई है, जिससे काश्तकार चिंतित हैं.
काश्तकार विजय बंधानी, गजेंद्र नौटियाल, प्रेम सिंह राणा का कहना है कि दिसंबर का आधा महीना बीत चुका है, किंतु अभी तक बारिश नहीं हुई है. जबकि दिसंबर माह में बर्फवारी जरूरी है, पौधे की चिलिंग हावर्स की अवधि पूरी न होने पर फल की गुणवत्ता और आकार में कमी आएगी जिसका उत्पादन पर असर पड़ेगा.
वहीं दूसरी ओर से पुरोला के काश्तकार श्यालिक राम नौटियाल, जगमोहन कैडा, रमेश असवाल, गोपाल भंडारी व नवीन गैरोला समेत अन्य किसानों का कहना है कि बुवाई के समय जंगली कबूतरों व बंदरों ने खेतों में बोए गए बीजों को भारी नुकसान पहुंचाया. ऊपर से लगातार बारिश न होने के कारण मटर व गेंहू की फसल ठीक से उग नहीं पाई और अब सूखे के हालात बन गए हैं.
किसानों ने बताया कि असिंचित क्षेत्रों के खेतों (उखड़ी खेत) में अभी तक बुवाई भी नहीं हो सकी है. यदि शीघ्र बारिश नहीं हुई तो किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. किसानों ने प्रशासन से मांग की है कि सूखे की स्थिति को देखते हुए राहत के उपाय किए जाएं और वन्यजीवों से हो रहे नुकसान से बचाव के लिए ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि आने वाले समय में किसानों को और कठिनाइयों का सामना न करना पड़े.
