
मसूरी: हाल में ही मूसलाधार बारिश ने जो कहर बरपाया, उसकी गूंज अब तक लोगों की चीखों और टूटी हुई दीवारों में महसूस की जा सकती है. आलम ये है कि अपने घरों में रहने से भी लोग कतरा रहे हैं. क्योंकि, झड़ीपानी क्षेत्र में जमीन दरक रही है. जिससे बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई है. कई जगहों पर तो दरार के बाद लैंडस्लाइड भी हो रहा है. जिसे देख लोगों के दिलों में दहशत का माहौल है.
भूस्खलन की चपेट में आई जिंदगी, एक मजदूर की मौत, सैकड़ों की नींदें छिनीं: बीती 15 सितंबर की रात को जब बारिश अपने चरम पर थी, उसी वक्त झड़ीपानी में भूस्खलन ने दस्तक दी. मिट्टी, पत्थर और मलबा तेजी से खिसकने लगा. जहां दो नेपाली मजदूर इस आपदा की चपेट में आ गए. जिनमें से एक की मलबे में दबकर मौके पर ही मौत हो गई थी.
यह घटना न सिर्फ एक दर्दनाक हादसा थी. बल्कि, आने वाले खतरे की चेतावनी भी थी. उस रात के बाद से झड़ीपानी में जमीन 2 से 3 फीट नीचे धंस रही है. सड़कों में गहरी दरारें आ गई हैं. अब ये दरारें लोगों के घरों की दीवारों में भी दिखाई देने लगी हैं. जो घर कभी उनकी सुरक्षा का प्रतीक थे, आज उन्हीं दीवारों से डर लगने लगा है.
नेताओं का दौरा, लेकिन हकीकत में फोटो सेशन से ज्यादा कुछ नहीं: आपदा के अगले दिन मसूरी विधायक और कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी, पालिका अध्यक्ष मीरा सकलानी और एसडीएम राहुल आनंद ने मौके पर पहुंचकर निरीक्षण किया. उन्होंने भूवैज्ञानिक और आपदा प्रबंधन की टीम को तत्काल भेजने के निर्देश दिए.
हैरानी की बात ये है कि आज एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी न तो कोई भूवैज्ञानिक टीम आई, न ही कोई आपदा राहत कार्य शुरू हुआ. यह चुप्पी और निष्क्रियता, एक बड़े सवाल की तरह खड़ी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि क्या प्रशासन किसी और मौत का इंतजार कर रहा है?
‘हमें चेक नहीं, सुरक्षा चाहिए’ ग्रामीणों की सीधी मांग: स्थानीय लोग सुशीला देवी, प्रतीमा, मुकुल सेमवाल, रतन नेगी, प्रेणा भंडारी और संगीता ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ‘सरकार हादसे के बाद कुछ पैसे का चेक देकर इतिश्री करना चाहती है, लेकिन हमें मुआवजा नहीं चाहिए. हमें अपने घर, अपने बच्चों और अपने जीवन की सुरक्षा चाहिए.‘
स्थानीय लोगों की मांग है कि प्रशासन जल्द से जल्द चेक डैम और आरसीसी वॉल का निर्माण कराए. ताकि, झड़ीपानी क्षेत्र की जमीन को और धंसने से रोका जा सके. वहीं, लोगों ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार और प्रशासन जल्द कुछ नहीं करता तो वो सड़कों पर उतरेंगे.
‘प्रशासन पूरी तरह फेल’ सामाजिक कार्यकर्ता का आरोप: सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप भंडारी ने सरकार और प्रशासन पर सीधा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि आपदा के इतने दिन बाद भी राहत का एक भी कदम नहीं उठाया गया है. मंत्री और अफसर सिर्फ कैमरों के सामने दिखने के लिए आते हैं. असल में न तो कोई भू-वैज्ञानिक आया, न कोई आपदा प्रबंधन की टीम.
सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप भंडारी का कहना है कि लोग अपने घरों में नहीं सो पा रहे हैं. बारिश के समय पूरा परिवार खुले में रात गुजारता है. उन्होंने भी चेतावनी दी कि यदि जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो स्थानीय लोग को साथ लेकर आंदोलन के लिए मजबूर होंगे.
सरकार की चुप्पी, खतरे की गूंज: आपदा प्रबंधन का उद्देश्य होता है, आपदा से पहले तैयारी, आपदा के समय राहत और बाद में पुनर्वास, लेकिन झड़ीपानी में इनमें से कोई भी चरण दिखाई नहीं दे रहा है. लोगों का ये आरोप अब सवाल में बदल गया है. उनका कहना है कि क्या सरकार को किसी बड़े हादसे का इंतजार है? क्या पहाड़ों में रहने वाले लोगों की जान की कीमत सिर्फ आंकड़ों या चेक तक सिमट गई है?
मांगें जो अनसुनी हैं, पर जरूरी हैं: स्थानीय लोगों का कहना है कि तत्काल भूवैज्ञानिक टीम भेजकर पूरे क्षेत्र का सर्वे किया जाए. जमीन की धंसाव को रोकने के लिए आरसीसी रिटेनिंग वॉल और चेक डैम का निर्माण जल्द शुरू हो. प्रभावित परिवारों के लिए अस्थाई पुनर्वास की व्यवस्था की जाए.
क्षेत्र को आपदा संभावित क्षेत्र घोषित कर विशेष निगरानी रखी जाए. प्रशासनिक टीमों की स्थायी तैनाती की जाए, जो कार्य को जमीनी स्तर पर देखें. उन्होने कहा कि अगर सरकार और प्रशासन ने जल्द इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की तो क्षेत्र की जनता आंदोलन करने के मजबूर होगी.