Site icon उत्तराखंड DISCOVERY

विजय दिवस: 1971 के नायकों को किया गया याद, शहीदों को दी गई श्रद्धाजंलि

देहरादून/हल्द्वानी: साल 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध में पाकिस्तान की करारी हार हुई थी. पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को भारतीय सेना के सामने सरेंडर करना पड़ा था. उसी याद में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है. इस युद्ध में उत्तराखंड के जवान भी शहीद हुए थे. इस मौके पर आज राज्यपाल गुरमीत सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व सीएम व महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे भगत सिंह कोश्यारी समेत प्रदेश के तमाम नेताओं ने 1971 के युद्ध में शहीद हुए जवानों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धाजंलि दी.

1971 के युद्ध में उत्तराखंड के कुल 248 जवान दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहीद हुए थे. वहीं 78 वीर सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए थे. इतना ही नहीं इस युद्ध में उत्तराखंड के 74 वीर जवानों को उनकी बहादुरी के लिए वीरता पदकों से सम्मानित किया गया था. ये आंकड़े बताते हैं कि यह युद्ध उत्तराखंड के लिए केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं बल्कि बलिदान की अमर गाथा बन गया.

इसके साथ ही ऊधम सिंह नगर के भी वीर सैनिकों ने इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. इन आंकड़ों के पीछे छिपा दर्द और गौरव आज भी पहाड़ों के गांव-गांव में महसूस किया जाता है. जब शहीद जवानों के पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर उनके गांव पहुंचे थे, तो पूरे क्षेत्र में शोक के साथ-साथ गर्व का भाव भी दिखाई दिया था. माताओं ने अपने कलेजे के टुकड़ों को खोया, लेकिन सिर गर्व से ऊंचा रखा. यही कारण है कि जब भी मातृशक्ति की बात होती है, तो उत्तराखंड की मातृ शक्ति उनमें सबसे आगे रहती है. क्योंकि इन्होंने न केवल अपने पति बल्कि बेटों तक को भारत की रक्षा के लिए सीमाओं पर भेजा है.

मुख्यमंत्री धामी ने दी श्रद्धाजंलि: इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वीर शहीदों को याद किया. इस दौरान सीएम धामी ने कहा कि 1971 के युद्ध में उत्तराखंड के सैनिकों ने कठिन भौगोलिक परिस्थितियों, सीमित संसाधनों और भीषण युद्ध हालातों के बावजूद दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया था. इन जांबाज सिपाहियों की बहादुरी का ही नतीजा था कि पाकिस्तान को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ.

सीएम धामी ने कहा कि उत्तराखंड को वीरभूमि यूं ही नहीं कहा जाता. सेना में यहां के जवानों की भागीदारी और बलिदान पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं. यहां की लोक संस्कृति, लोकगीत और कहानियां आज भी उन वीर सपूतों की शौर्य गाथाओं से भरी पड़ी हैं, जिन्होंने 1971 के युद्ध में देश के मान सम्मान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. 1971 का भारत-पाक युद्ध उत्तराखंड के लिए सिर्फ इतिहास का एक अध्याय नहीं बल्कि बलिदान, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की अमर पहचान है, जो आने वाली पीढ़ियों को देश के लिए जीने मरने की प्रेरणा देती रहेगी.

राज्यपाल ने किया शहीदों को याद: देहरादून गढ़ी कैंट में मौजूद चीड़ बाग शौर्य स्थल पर 1971 भारत पाक जंग के शहीदों को याद किया गया. इस मौके पर राज्यपाल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने मातृभूमि की रक्षा करने वाले वीर शहीदों को पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी.

राज्यपाल गुरमीत सिंह ने साल 1971 के भारत-पाक युद्ध की ऐतिहासिक, रणनीतिक और निर्णायक सैन्य जीत को याद करते हुए कहा कि यह सैन्य युद्ध भारत के सैन्य हिस्ट्री का एक स्वर्णिम अध्याय है. इस युद्ध में केवल दुश्मन के 93 हजार सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर ही नहीं किया गया, बल्कि पाकिस्तान को दो टुकड़ों में विभाजित कर एक नए देश के रूप में बांग्लादेश को दुनिया के नक्शे पर लाया गया. 54 साल पहले इस लड़ाई में शहीद और घायल हुए जवानों के परिजनों की देखभाल करना हम सभी की सार्वजनिक जिम्मेदारी है.

पूर्व मुख्यमंत्री ने शहीदों को दी श्रद्धाजंलि: हल्द्वानी के नैनीताल रोड स्थित शहीद पार्क में आज 1971 के युद्ध में शहीद हुए सेना के अधिकारियों और जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. उनके बलिदान को याद किया गया. इस मौके पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि 1971 की जंग में पाकिस्तान के ऊपर भारत की शानदार जीत भारतीय सेना के बलिदान और साहस का परिचय देता है, जिसको किसी भी कीमत पर भुलाया नहीं जा सकता. 93 हजार पाकिस्तान सेना को सरेंडर करवाना और पाकिस्तान से अलग बांग्लादेश बनाए जाना यह सब भारतीय सेना के गौरवशाली वीरता का इतिहास है, जो हमेशा याद किया जाएगा.

Exit mobile version