भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदेश सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति को सरकारी विभागों के अफसर ही पलीता लगा रहे हैं। एक ओर जहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की कवायद में जुटे हैं तो वहीं अधिकारी पूरी तरह से लापरवाह नजर आ रहे हैं। नया मामला नगर निगम की ओर से शहर की सफाई व्यवस्था में लगाए गए कर्मचारियों के वेतन के नाम पर करोड़ों रुपये का फर्जीवाड़ा सामने आया है। बोर्ड भंग होने से पहले पार्षदों के पास ही स्वच्छता समितियों का अधिकार था। पार्षदों ने अपने वार्ड में समिति के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के संयुक्त खाते खुलवाए, जिनमें निगम की ओर से कर्मचारियों का वेतन भेजा जाता था। स्वच्छता समितियों की ओर से उपलब्ध कराई गई सूची में शामिल कर्मचारी मौके पर नहीं पाए गए। इसलिए नगर निगम ने कर्मचारियों का भौतिक सत्यापन शुरू कर दिया है। इस सत्यापन की रिपोर्ट आने तक इन सफाई कर्मियों का वेतन रोक दिया गया है। आपको बता दें कि नगर निगम ने सभी 100 वार्डों में सफाई के लिए स्वच्छता समितियां गठित की गई है। प्रत्येक वार्ड में गठित समिति में आठ से 12 सफाई कर्मचारी रखे गए। ऐसे में शहर भर में इनकी सख्या एक हजार के करीब है। अभी तक निगम ने 75 वार्डों में कर्मचारियों का भौतिक सत्यापन किया है, जिसमें गड़बड़ी सामने आई है। शेष 25 वार्डों में भी सत्यापन की कार्रवाई चल रही है। प्रत्येक कर्मचारी का मासिक वेतन ₹15 हजार है। ऐसे में प्रतिवर्ष करीब ₹18 करोड़ के हिसाब से बीते पांच वर्ष में निगम करीब ₹ 90 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है।