उत्तराखंड की बोलियों को डिजिटल पहचान देगी भाषिणी, भाषाई दीवार तोड़ने का ये है प्लान

देहरादून: उत्तराखंड की गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी बोलियों पर भाषिणी यानी भारत की राष्ट्रीय भाषा प्रौद्योगिकी मिशन द्वारा काम किया जा रहा है. इसके तहत इन तीनों की बोलियों को AI मॉडल के जरिए डिजिटल पहचान दी जाएगी. जिसके बाद डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इन बोलियों को लेकर भाषाई बाधाओं को दूर किया जा सकेगा. खास बात ये है कि फिलहाल राज्य में भाषिणी वॉयस मॉडल पर काम किया जा रहा है, ताकि भाषा को लेकर डिजिटल पहुंच और आसान की जा सके.
उत्तराखंड की बोलियों को डिजिटल पहचान देगी भाषिणी: भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया नेशनल लैंग्वेज ट्रांसलेशन मिशन भाषिणी देश की भाषाई विविधता को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मजबूती देने का काम कर रहा है. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों के लिए आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस AI आधारित मॉडल तैयार करना है, ताकि तकनीक की दुनिया में भाषा किसी के लिए बाधा न बने.
भाषाई दीवार तोड़ने का प्लान: फिलहाल भाषिणी द्वारा देश की 22 आधिकारिक भाषाओं के लिए AI मॉडल विकसित किए जा चुके हैं. इसके साथ ही अलग-अलग राज्यों की स्थानीय बोलियों को भी इस मिशन से जोड़ा जा रहा है. इसी कड़ी में उत्तराखंड की प्रमुख बोलियों गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी पर भी काम शुरू हो चुका है
उत्तराखंड की बोलियों को दी जा रही है डिजिटल पहचान: कुल मिलाकर भाषिणी न केवल उत्तराखंड की बोलियों को डिजिटल पहचान दे रही है, बल्कि तकनीक को आम लोगों के और करीब ला रही है. यह पहल भाषा, संस्कृति और तकनीक के बीच की दूरी को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है.
