उत्तराखंड में भी है काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी जैसी ही है मान्यता, इसे कहते हैं कलियुग की काशी

उत्तरकाशी: आज सोमवार है. सोमवार भगवान भोलेनाथ की भक्ति का दिन होता है. भगवान शिव के भक्त सोमवार के दिन शिव मंदिर और शिवालयों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं. अनेक भक्त खासतौर पर महिला श्रद्धालु सोमवार का व्रत रखती हैं. आज हम भगवान भोलेनाथ के भक्तों को उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कराते हैं. इस मंदिर की महत्ता वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर जैसी ही है.
उत्तराखंड में भी है काशी विश्वनाथ मंदिर: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में भी काशी विश्वनाथ मंदिर है. बाबा काशी विश्वनाथ के मंदिर विश्व में दो ही स्थानों पर मौजूद हैं. इसमें पहला मंदिर बनारस तो दूसरा उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में स्थित है. पुराणों में उल्लेख है कि कलियुग में भगवान काशी विश्वनाथ अनादि काल से इस मंदिर में स्वयंभू लिंग के रूप में उत्तरकाशी में विराजमान हैं.
उत्तरकाशी में है काशी विश्वनाथ मंदिर: ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी. यहां भगवान परशुराम ने अपने गुस्से को शांत करने के लिए बाबा काशी विश्वनाथ की पूजा अर्चना की थी. जिसके बाद उत्तरकाशी का नाम शौम्य काशी भी कहा जाता है. उत्तरकाशी जिला उत्तराखंड का सीमांत जिला है. उत्तरकाशी चीन के कब्जे वाले तिब्बत से सीमा साझा करता है.
भागीरथी के किनारे हैं मंदिर: भागीरथी नदी के किनारे उत्तरकाशी (बाड़ाहाट) में विश्वनाथ मंदिर का प्राचीन मंदिर है. इसी कारण यहां का नाम उत्तर की काशी पड़ा है. स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि ‘यदा पापस्य बाहुल्यं यवनाक्रान्तभुतलम्। भविष्यति तदा विप्रा निवासं हिमवद्गिरो।। काश्या सह करिष्यामि सर्वतीर्थ: समन्वित:। अनदिसिद्धं मे स्थानं वत्तते सर्वदेय हि।।’
कलियुग की काशी है उत्तरकाशी: अर्थात ‘जब पाप का बाहुल्य होगा तथा पृथ्वी यवनों से अक्रान्त हो जायेगी, तब मेरा निवास हिमालय पर्वत में होगा. अनादिसिद्ध हिमालय सर्वदा ही मेरा स्थान रहा है. मैं उसको इस समय यानी कलियुग में काशी के सहित समस्त तीर्थों को उत्तर की काशी में युक्त कर दूंगा. स्कन्दपुराण के केदारखंड में भगवान आशुतोष ने उत्तरकाशी को कलियुग की काशी के नाम से संबोधित किया है.
साथ ही उन्होंने व्यक्त किया है कि वे अपने परिवार, समस्त तीर्थ स्थानों एवम् काशी सहित कलियुग में उस स्थान पर वास करेंगे, जहां पर एक अलौकिक स्वयंभू लिंग, जो कि द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक है, स्थित है. अर्थात, उत्तरकाशी में वास करेंगे. उत्तरकाशी में भगवान विश्वनाथ अनादि काल से चिर समाधि में लीन होकर मंदिर में विराजमान हैं. भगवान आशुतोष यहां सदियों से संसार के समस्त प्राणियों का अपने शुभाशीष से कल्याण करते आ रहे हैं.
परशुराम ने की थी मंदिर की स्थापना: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विश्वनाथ मंदिर की स्थापना परशुराम द्वारा की गई थी. यहां पाषाण शिवलिंग 56 सेंटीमीटर ऊंचा एवं दक्षिण कि ओर झुका हुआ है. गर्भगृह में भगवान गजानन एवं माता पार्वती शिवलिंग के सम्मुख विराजमान हैं. वाह्य गृह में नंदी प्रतीक्षारत हैं. वर्तमान मंदिर का पूर्णोद्धार सन 1857 में टिहरी गढ़वाल की रानी खनेटी देवी पत्नी तत्कालीन राजा सुदर्शन शाह ने करवाया था. मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में पाषाण के आधार पर किया गया है. मंदिर के निर्माण में पत्थर का प्रयोग किया गया है.
