पिथौरागढ़ की दो ग्लेशियर झीलों के अध्ययन के लिए टीम गठित, 20 सितंबर को होगी रवाना

देहरादून: उत्तराखंड राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद 968 ग्लेशियरों में करीब 1200 ग्लेशियर लेक मौजूद हैं. जिसमें से 5 ग्लेशियर झीलों को अतिसंवेदनशील श्रेणी में रखा गया है. जिसमें से चमोली जिले में मौजूद वसुधारा ग्लेशियर झील का आपदा प्रबंधन विभाग अध्ययन करवा चुका है. ऐसे में पिथौरागढ़ जिले में मौजूद चार अतिसंवेदनशील ग्लेशियर झीलों में दो ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने टीम गठित कर दी है. ये टीम 20 सितंबर को दो ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने के लिए रवाना होगी. ताकि इन झीलों की असल स्थिति का पता लगाया जा सके.
दरअसल, साल 2024 में नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) ने देश भर में मौजूद ग्लेशियर झीलों का अध्ययन कर रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में मौजूद करीब 1200 ग्लेशियर झीलों में से 13 ग्लेशियर झीलों को संवेदनशील और अति संवेदनशील के श्रेणी में रखा था. साथ ही समय-समय पर इसकी निगरानी के निर्देश भी दिए थे. इसके बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने अति संवेदनशील श्रेणी में रखे गए पांच ग्लेशियर लेकों की निगरानी का निर्णय लिया. साथ ही साल 2024 में विशेषज्ञों की टीम गठित कर चमोली जिले में स्थित वसुधारा ग्लेशियर झील का अध्ययन करवाया था. ऐसे में अब आपदा प्रबंधन विभाग पिथौरागढ़ जिले में मौजूद चार अतिसंवेदनशील ग्लेशियर झील में से दो ग्लेशियर झील का अध्ययन करने जा रहा है.
इसके लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने विशेषज्ञों की टीम भी गठित कर दी है और ये टीम 20 सितंबर को दो अतिसंवेदनशील ग्लेशियर झील की निगरानी के लिए रवाना हो जाएगी. दरअसल, आपदा प्रबंधन विभाग ने सितंबर या अक्टूबर महीने में टीम को भेजने का निर्णय लिया था. जिसकी मुख्य वजह यही थी कि सितंबर महीने में बारिश का सिलसिला भी कम हो जाता है और इस दौरान ग्लेशियर झीलों में पानी की मात्रा भी अधिक होती है. लिहाजा, इस दौरान ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करना काफी महत्वपूर्ण होता है. यही वजह है कि सितंबर महीने में ही विशेषज्ञों की टीम को भेजने का निर्णय लिया गया है.
20 सितंबर को रवाना होगी टीम: वहीं, ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि पिथौरागढ़ जिले में स्थित दो अति संवेदनशील ग्लेशियर झीलों के अध्ययन के लिए तैयारी पूरी की जा चुकी है. ऐसे में विशेषज्ञों की टीम 20 सितंबर को देहरादून से रवाना हो रही है. विशेषज्ञों की टीम में उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (यूएसडीएमए), जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस), आईटीबीपी समेत तमाम संस्थानों के एक्सपर्ट शामिल हैं. ये टीम ग्राउंड जीरो पर जाकर झीलों की बाथीमेट्री (Bathymetry) करेगी.
क्या होता है बाथीमेट्री: बाथीमेट्री, मशीन के जरिए झील की लंबाई-चौड़ाई और झील में मौजूद पानी का पता लगाया जाता है. यही नहीं, झील के संभावित खतरे का मैनुअल सर्वे कर पता लगाया जाएगा. इसके अलावा झील के समीप किस किस तरह के उपकरण लगाने जाने हैं? क्या कुछ सावधानियां बढ़ती जानी हैं? झील के टूटने से संभावित खतरे वाले क्षेत्र का अध्ययन संबंधित जानकारी देंगे.
अभी तक नहीं लगे सेंसर: आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से साल 2024 में गठित विशेषज्ञों की टीम ने चमोली जिले में स्थित वसुधारा ग्लेशियर झील का अध्ययन किया था. अध्ययन के बाद विशेषज्ञों की टीम ने इस झील के आसपास सेंसर लगाए जाने का सुझाव दिया था. लेकिन अभी तक सेंसर लगाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है, जिसके सवाल पर आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि सेंसर लगाए जाने का स्पेसिफिकेशन तैयार कर लिया गया है. इस क्षेत्र में नए तरीके के हाईटेक सेंसर लगाए जाने हैं. लेकिन उस क्षेत्र की विषम परिस्थितियों के चलते अभी तक सेंसर नहीं लगाया जा सका है. लेकिन कार्रवाई गतिमान है और जल्द ही सेंसर लगाने की कार्रवाई पूरी कर दी जाएगी.