27 November 2025

25 साल से अधर में लटका कंडी मार्ग, अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जगी फिर उम्मीद

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रामनगर: उत्तराखंड राज्य गठन के 25 साल बाद भी कंडी मार्ग नहीं बन पाया, यह वही ऐतिहासिक सड़क है, जो लगभग 200 साल पुरानी है और जिसे लोग कभी सब-माउंटेन रोड के नाम से जानते थे. ये अहम मार्ग कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों को एक-दूसरे से जोड़ती है. इस मार्ग के बनने से कुमाऊं और गढ़वाल की दूरी कम हो जाएगी. अब सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश ने मार्ग निर्माण की नई किरण जगाई है.

अहम क्यों कंडी मार्ग: ब्रह्मदेव मंडी टनकपुर से कोटद्वार तक फैला कंडी मार्ग कभी पहाड़ और मैदान की सीमा का मानक हुआ करता था. ब्रिटिश दौर में इसी सड़क के ऊपर तैनात कर्मचारियों को पर्वतीय भत्ता मिलता था, जबकि नीचे तैनात कर्मचारियों को नहीं. यानी यह मार्ग लंबे समय से पहाड़ की पहचान से भी जुड़ा था. उत्तराखंड राज्य बनने से पहले ही इसे फिर से शुरू करने की मांग चल रही थी. राज्य बनने के बाद यह मांग और तेज हुई, लेकिन कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों ने इसे सिर्फ चुनावी मंचों पर भुनाया. हकीकत यह रही कि कोई भी सरकार इस पर गंभीरता से काम नहीं कर सकी, फाइलें आगे नहीं बढ़ी और कंडी मार्ग आज भी कागजों में ही कैद है.

कॉर्बेट क्षेत्र में आता है 43 किलोमीटर का हिस्सा: कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ने वाला यह मार्ग रामनगर से कोटद्वार तक जाता है. पहले यहां बस सेवा भी चलती थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वह भी बंद हो गई. कुल मार्ग में से 43 किलोमीटर हिस्सा कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अंदर आता है. साल 1999 में केंद्र सरकार ने आम लोगों के लिए इस मार्ग को खोले जाने की अनुमति दी थी.

सड़क बनने से बाघों और अन्य वन्यजीवों पर खतरा: राज्य बनने के बाद उत्तराखंड सरकार ने इसे ऑल वेदर रोड के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा. लेकिन जैसे ही इसकी जानकारी एनजीओ तक पहुंची, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. दलील थी कि सड़क बनने से बाघों और अन्य वन्यजीवों पर खतरा बढ़ेगा. वनीकरण, वन्य जीव संरक्षण और विकास इन तीनों के बीच फंसा कंडी मार्ग अदालतों में अटक गया. लेकिन सबसे बड़ा अफसोस यह रहा कि सरकारें अदालत में कोई ठोस पैरवी ही नहीं कर सकीं. यही वजह है कि मामला लंबे समय से लटका हुआ है.

मार्ग को लेकर उठती रही मांग: समय-समय पर कई नेता इसे शुरू करने की पहल करते रहे, पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, साल 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व सांसद तीरथ सिंह रावत, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी,पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत कई बार सर्वे हुए, प्रस्ताव बने, लेकिन सभी कोशिशें कागजों की धूल में खो गईं. चुनावी मुद्दा बनने के अलावा किसी भी सरकार ने इसे असल में प्राथमिकता नहीं दी.

कंडी मार्ग का सामरिक महत्व: यह सड़क सिर्फ लोगों की यात्रा को आसान नहीं बनाती, बल्कि देश की सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद अहम मानी जाती है. गढ़वाल में लैंसडाउन स्थित गढ़वाल रेजिमेंट सेंटर और कुमाऊं के रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट मुख्यालय दोनों को जोड़ने के लिए यह सबसे सीधा और तेज मार्ग है.

लोग क्यों परेशान हैं: कंडी मार्ग बंद होने के कारण रामनगर से कोटद्वार जाने के लिए लोगों को यूपी के नजीबाबाद होकर जाना पड़ता है. रामनगर से कोटद्वार तक की दूरी 165 किलोमीटर है, कंडी मार्ग बनने पर यह दूरी सिर्फ 88 किलोमीटर रह जाएगी. इससे न सिर्फ समय और धन बचता, बल्कि ईंधन कम जलता, प्रदूषण कम होता और दोनों मंडलों का व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ता.

पीसी जोशी ने उठाई आवाज: कालागढ़ कंडी मार्ग निर्माण संघर्ष समिति के अध्यक्ष पीसी जोशी ने बताया साल 2005 में वे इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां से हाईकोर्ट जाने को कहा गया. साल 2010 में हाईकोर्ट गए तो कोर्ट ने मार्ग निर्माण पर सहमति जताई. साल 2014 में जैसे ही वे दोबारा हाईकोर्ट पहुंचे, दो दर्जन से अधिक एनजीओ उनकी रिट के खिलाफ खड़े हो गए, जिसके बाद उन्हें अपनी याचिका वापस लेनी पड़ी. जोशी कहते हैं प्रदेश का दुर्भाग्य है कि पर्यावरण के नाम पर रोक लगाने वाले तो बहुत हैं, लेकिन जनता की आवाज उठाने वाला तंत्र कमजोर पड़ जाता है.

सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश: 17 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने देश के सभी नेशनल पार्कों के लिए एक समान पॉलिसी बनाने और स्थानीय लोगों के हितों को ध्यान में रखने के निर्देश दिए हैं. पीसी जोशी इसे कंडी मार्ग के लिए बड़ा अवसर मानते हैं. उनके अनुसार, इस आदेश के बाद टाइगर रिजर्व और अन्य अभ्यारणों में विकास कार्यों के लिए नीति स्पष्ट होगी और सड़क निर्माण की राह साफ हो सकती है.

मार्ग को लेकर बैठक: संघर्ष समिति का कहना है कंडी मार्ग को परमिट सिस्टम के तहत कभी खोला जाता था, साल 2018 से यह भी बंद कर दिया गया,स्थानीय जनता लंबे समय से आंदोलन करती रही है, लेकिन सरकारें संरक्षणवादियों के दबाव में पीछे हट गईं. अब सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के बाद कुमाऊं-गढ़वाल के आंदोलनकारियों की संयुक्त बैठक बुलाने की तैयारी है, ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके.

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