25 December 2025

मसूरी 7375 बाउंड्री पिलर गायब केस: अब उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचा मामला, जानें अबतक क्या हुआ?

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देहरादून: मसूरी वन प्रभाग के चर्चित मामले को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कई बातें कही हैं. मसूरी वन प्रभाग से जुड़े 7375 लापता बाउंड्री पिलर (मुनारे) और क्षेत्रीय वन अधिकारियों की संपत्तियों में असामान्य वृद्धि के गंभीर मामले पर कड़ा रुख अपनाया है. हाईकोर्ट ने इस प्रकरण में सीबीआई, केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है. बता दें कि, ईटीवी भारत ने वन प्रभाग से गायब हो गए 7 हजार से ज्यादा बाउंड्री पिलर, IFS अधिकारी ने किया खुलासा शीर्षक से 22 अगस्त 2025 को इस खबर पर प्रकाश डाला था.

खबर के बाद सितंबर 2025 में IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की रिपोर्ट पर केंद्र का जवाब आया था. 10 सितंबर को उत्तराखंड में गायब हो गए 7,375 बाउंड्री पिलर, सख्त हुई केंद्र सरकार, जांच पर भी उठाए सवाल शीर्षक के साथ इस खबर प्रकाशित हुई थी. इस पूरे मामले में केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सहायक महानिदेशक नीलिमा शाह ने उत्तराखंड शासन को पत्र लिखकर डिटेल रिपोर्ट देने को कहा था.

वहीं, इसी मामले को लेकर अब नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, जहां न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने न केवल सीबीआई और सरकारों को बल्कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग और सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय सशक्त समिति को भी नोटिस जारी किया है. अदालत ने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर सीमा पिलर लापता होना बेहद गंभीर विषय है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता. हाईकोर्ट के इस सख्त निर्देश के बाद कई अधिकारियों की सांसें अटकी हुई हैं.

छह सप्ताह में जवाब, फरवरी में अगली सुनवाई: नैनीताल हाईकोर्ट ने 24 दिसंबर 2025 को इस मामले की सुनवाई करते हुए सभी पक्षों को छह सप्ताह के भीतर अपना जवाबी शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं. मामले की अगली सुनवाई 11 फरवरी 2026 को होगी. सुनवाई के दौरान अदालत ने हजारों सीमा पिलर के गायब होने पर गहरी नाराजगी भी जाहिर की.

यह मामला पर्यावरण कार्यकर्ता नरेश चौधरी द्वारा दायर जनहित याचिका के जरिए सामने आया है. याचिका में मांग की गई है कि मसूरी वन प्रभाग के अंतर्गत आने वाले सभी वन क्षेत्रों का वैज्ञानिक और जियो रेफरेंसिंग सर्वे कराया जाए, ताकि लापता सीमा पिलर की तस्वीर स्पष्ट हो सके और उन्हें तय समय सीमा में दोबारा लगाए जा सके. इसके साथ ही याचिका में प्रभावित वन क्षेत्रों के लिए पुनर्वास और पर्यावरणीय सुधार योजनाएं लागू करने के निर्देश देने की भी मांग की गई है.

बता दें कि, याचिका में हाईकोर्ट से यह भी आग्रह किया गया है कि राज्य में वर्तमान में राजस्व अधिकारियों के नियंत्रण में मौजूद वन भूमि को एक निश्चित समयसीमा के भीतर वन विभाग को हस्तांतरित करने के आदेश जारी किए जाएं.

2023 की रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा: यह पूरा मामला वर्ष 2023 में उस समय उजागर हुआ, जब तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने मसूरी वन प्रभाग में सभी सीमा पिलर का भौतिक सत्यापन कराने के निर्देश दिए थे. उस दौरान तैयार की जा रही नई कार्ययोजना के तहत प्रभागीय वनाधिकारी मसूरी की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ. रिपोर्ट के अनुसार, कुल 12 हजार 321 सीमा पिलरों में से 7,375 सीमा स्तम्भ मौके पर पूरी तरह से गायब पाए गए.

जांच में यह भी सामने आया कि लापता सीमा पिलरों में से लगभग 80 प्रतिशत केवल मसूरी रेंज और राजपुर रेंज में स्थित थे. ये दोनों क्षेत्र रियल एस्टेट की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं. जहां होटल, रिजॉर्ट और आवासीय परियोजनाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है.

चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (CCF) वर्किंग प्लान संजीव चतुर्वेदी ने जांच रिपोर्ट में खुलासा करते हुए बताया था कि मसूरी वन प्रभाग में गायब हुए पिलरों की रिपोर्ट उन्होंने दो महीने पहले ही विभाग को दी थी. रिपोर्ट के अनुसार, भद्रीगाड़ से 62 पिलर, जौनपुर से 944 पिलर, देवलसारी से 296 पिलर, कैंपटी से 218 पिलर, मसूरी क्षेत्र से 4133 पिलर और रायपुर क्षेत्र से 1722 पिलर गायब हुए हैं. ये रिपोर्ट केंद्र को 300 से ज्यादा पन्नों की जांच रिपोर्ट के जरिए भेजी गई थी, जिस पर केंद्र का जवाब भी आया था. केंद्र सरकार ने उत्तराखंड शासन को पत्र लिख कर कहा था कि मामला बेहद गंभीर है. लिहाजा, दोषियों पर कार्रवाई की जाए.

पहले ही हो चुकी सीबीआई और ईडी जांच की मांग: अपनी जांच और फैसले के लिए हमेशा से चर्चा में रहने वाले आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने जून और अगस्त 2025 में उत्तराखंड के वन प्रमुख HoFF (हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स) को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से कराने की मांग की थी.

पत्रों में संबंधित वन अधिकारियों के नाम पर अर्जित भारी अचल संपत्तियों की जांच का भी उल्लेख किया गया था. इसके बाद अगस्त 2025 में पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने भी उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखकर वन संरक्षण अधिनियम 1980 के उल्लंघन से जुड़े मामलों की जांच और आवश्यक कार्रवाई करने को कहा था.

नई समिति पर भी सवाल: इसी बीच राज्य के वन प्रमुख ने इस मामले की पुन: समीक्षा के लिए एक नई समिति का गठन किया. हालांकि, याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह समिति तथ्यों को कम करके दिखाने और जमीनी साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकती है. याचिका में यह भी दावा किया गया है कि समिति में शामिल कुछ अधिकारी पहले भी विवादों में रह चुके हैं. याचिका में यह तर्क भी दिया गया है कि 7,375 लापता सीमा पिलर की संख्या को राज्य सलाहकार समिति द्वारा स्वीकार किए जाने और उसी आधार पर केंद्र सरकार द्वारा वर्किंग प्लान को नवंबर 2025 में अंतिम मंजूरी दिए जाने के बाद अब पूरी प्रक्रिया को दोबारा शुरू करना नियमों के खिलाफ और प्रक्रियागत अनियमितता की श्रेणी में आता है.

क्या होता है मुनारे या बाउंड्री पिलर: जैसा कि नाम से समझा जा सकता है, मुनारे यानी बाउंड्री पिलर, सीधे तौर पर कहें तो सीमा स्तम्भ. यानि जो सीमा (बाउंड्री) को दर्शाता है. वन विभाग की ओर से लगाए गई मुनारों का मतलब ये होता है कि उस प्वाइंट से वन विभाग की संपत्ति शुरू होती है. वहां फिर कोई और निर्माण नहीं कर सकता. आमतौर पर ये बाउंड्री पिलर सीमेंट, रेत, पत्थर से बनाए जाते हैं.

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