24 July 2024

उत्तराखंड में भाँग की खेती को मिल सकता है बढ़ावा

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उत्तराखंड की जलवायु औद्योगिक भांग की खेती के लिहाज से काफी अनुकूल मानी जाती है।


देवभूमि उत्तराखंड में भांग की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है, अखिर क्या है ये पूरा मामला…हमारी इस खास रिपोर्ट में देखिए…..
उत्तराखंड की जलवायु औद्योगिक भांग की खेती के लिहाज से काफी अनुकूल मानी जाती है। बावजूद इसके अभी हैंप को प्रदेश में व्यावसायिक रूप से बढावा नहीं मिल पा रहा है। हालाकि इसके लिए शासन स्तर पर कई दौर की बैठकें भी हो चुकी है, लेकिन अब भांग की व्यवसायिक खेती की नीति पर जल्द ही अमल होने की उम्मीद की जा रहीं हैं। हालांकि इस मामले विपक्षी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष मथुरा का जोशी ने सरकार और सिस्टम की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़ा करते हुए इस मामले को लेकर गंभीर नहीं होने का आरोप लगाया है.
विशेषज्ञों की माने तो पर्वतीय क्षेत्रों में जंगली जानवरों की समस्या और सिंचाई की सुविधा न होने के कारण बंजर हो रही भूमि पर भांग की खेती किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया बन सकती है। गौरतलब है कि साल 2017 में तत्कालीन सरकार के समय प्रदेश में भागं की खेती को बढ़ावा देने की पहल शुरू की गई थीं। जबकि मौजूदा समय में ट्रायल के तौर पर देहरादून, पौड़ी, बागेश्वर, चंपावत, चमोली और अल्मोड़ा जिले में 36 किसानों को भांग की खेती के लिए
उद्यान विभाग और आबकारी विभाग ने मिलकर औद्योगिक हैंप और मेडिकल कैनाबिस नीति का प्रस्ताव किया है। आबकारी विभाग की ओर से लाइसेंस भी जारी किए गए। लेकिन अभी तक नीति को कैबिनेट से मंजूरी नहीं मिल पाई है।
दरअसल वैश्विक स्तर पर औद्योगिक हैंप के बीज और रेशे की काफी मांग है। शायद यही वजह है कि कई देश इसकी खेती और व्यापार कर रहे हैं, इसके रेशे और बीज का इस्तेमाल कई उत्पाद और मेडिकल में किया जा रहा है। इसमें प्रमुख देश अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, नीदरलैंड, डेनमार्क, चीन, थाईलैंड शामिल हैं। अब आपको बताते हैं कि अखिर इसका इस्तेमाल किसमें होता है दरअसल हैंप के बीज का इस्तेमाल, स्नैक फूड, अनाज, सूप, चटनी, मसाला, बेकरी, पास्ता, चॉकलेट, पेय पदार्थ, एनर्जी ड्रिंक, जूस बनाने में किया जाता है। इसके अलावा कास्मेस्टिक उत्पाद, रेशे *फाइबर* का टेक्सटाइल, पेपर, ऑटोमोबाइल, फर्नीचर सहित अन्य कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं।
इस मामले पर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता वीरेंद्र बिष्ट ने विभागीय स्तर पर देरी होने को स्वीकारते हुए विभागीय स्तर पर इसका जल्द समाधान कर नीति को लागू होने की उम्मीद जताई है.
नीति का अंतिम प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया है। नीति को मंजूरी मिलने के बाद ही प्रदेश में व्यावसायिक रूप से इंडस्ट्रियल हैंप की खेती की जाएगी। इससे किसानों को आर्थिक रूप से लाभ मिलेगा।
अब देखना होगा कि आखिर इस नीति को कैबिनेट से कब तक मंजूरी प्रदान की जाएगी ?

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