15 October 2025

उत्तराखंड में पहली बार सड़कों पर उतरेगी मैकेनिकल स्वीपिंग मशीन, जानिये इसकी खासियत

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देहरादून: भारत सरकार की मदद से उत्तराखंड में पहली बार मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनों को विभिन्न शहरों में लाने की तैयारी है. इसके जरिए शहरी क्षेत्रों की सड़कों पर धूल और प्रदूषण को नियंत्रित करने का दावा किया गया है. इसके तहत पहले चरण में देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर को चुना गया है. बाकी शहरों में भी ऐसी ही मशीनों को लाने के लिए प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड प्रयास कर रहा है.

राजधानी देहरादून और योग नगरी ऋषिकेश के अलावा कुमाऊं के काशीपुर में अब एक ऐसी मशीन इंट्रोड्यूस की जा रही है जो सड़कों पर केवल साफ सफाई करती हुई दिखाई देंगी बल्कि धूल के कणों को वातावरण में जाने से भी रोकेंगी. राज्य में पहली बार लायी जा रही यह मशीन सड़क पर जमी धूल को अपने भीतर समेट लेगी. उसे निर्धारित जगह पर डंप किया जाएगा. खास बात यह है कि यह मशीन न केवल सड़कों की सफाई करेगी, बल्कि जमीन पर फैली बारीक धूल को भी इकट्ठा करेगी. इससे वातावरण में मौजूद PM 10 कणों की मात्रा कम होने की उम्मीद है, जो प्रदूषण और सांस संबंधी बीमारियों का बड़ा कारण माने जाते हैं.

मैकेनिकल स्वीपिंग मशीन पूरी तरह ऑटोमेटिक तकनीक पर काम करती है. यह चलते-चलते धूल को सोख लेती है. उसे सुरक्षित रूप से स्टोर कर देती है. देश के कई बड़े शहर जैसे दिल्ली और इंदौर पहले ही इन मशीनों का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं. वहां धूल प्रदूषण में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं. अब उत्तराखंड भी इस तकनीक को अपनाने जा रहा है.

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव पराग मधुकर धकाते बताते है कि इस मशीन से सड़क धूल और अन्य ठोस कचरे को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकेगा. शहरों में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए यह कदम बेहद महत्वपूर्ण है. माना जा रहा है कि मशीनों के उपयोग से वातावरण की गुणवत्ता पर प्रत्यक्ष असर दिखेगा. लोगों को स्वच्छ हवा मिलेगी.

पहले चरण के बाद दूसरे चरण में राज्य के अन्य बड़े शहरों को भी यह सुविधा मिलेगी. इसमें विशेष रूप से हल्द्वानी और हरिद्वार को शामिल किया गया है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहरी विकास विभाग के साथ मिलकर योजना बनाई है कि आने वाले वर्षों में प्रदेश के सभी प्रमुख नगरों में ऐसी मशीनों को उतारा जाये. सरकार को उम्मीद है कि इस पहल से शहरी इलाकों की स्वच्छता व्यवस्था मजबूत होगी. लोगों को धूल प्रदूषण से राहत मिलेगी. यह कदम न केवल साफ-सफाई की दिशा में अहम है बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी मील का पत्थर साबित हो सकता है.

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