25 साल में छोटे कमरे से 6 मंजिला भवन में पहुंचा आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, लेकिन आज तक नहीं बना पाया पॉलिसी

देहरादून: उत्तराखंड राज्य स्थापना की रजत जयंती वर्षगांठ का जश्न शुरू हो चुका है. लेकिन आपदाओं से घिरे इस हिमालयी राज्य में पिछले 25 सालों में आई भीषण आपदाओं के बाद भी राज्य अब तक आपदा प्रबंधन नीति नहीं बना पाया है. स्थिति यह है कि 25 साल में एक छोटे कमरे से 6 मंजिला भवन में तो आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पहुंच गया, लेकिन आज तक पॉलिसी नहीं बना पाया. केदारनाथ जैसी दर्जनों भीषण आपदाओं के बाद आज भी प्राधिकरण ठेके पर है.
25 साल में भी उत्तराखंड में नहीं बनी आपदा प्रबंधन नीति: उत्तराखंड राज्य के गठन के 25 साल होने पर रजत जयंती वर्ष मना रहा है. इस दौरान सरकार 1 नवंबर से लेकर 11 नवंबर तक प्रदेश भर में राज्य गठन के 25 सालों की यात्रा को लेकर कई तरह की कार्यक्रम आयोजित कर रही है. इन 25 सालों में उत्तराखंड के खाते में क्या-क्या उपलब्धियां जुड़ी और किस तरह से इन 25 सालों में उत्तराखंड ने विकास के नए आयाम हासिल किए हैं, इसको लेकर सरकार जनता के बीच जा रही है.
आरटीआई ने किया बड़ा खुलासा: राज्य गठन के 25 साल बाद हिमालयी राज्य उत्तराखंड ने आपदाओं को लेकर क्या कुछ सीखा है और उससे क्या कुछ सबक लिया है, इसका जवाब बेहद स्याह नजर आ रहा है. दरअसल हाल ही में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) से मांगी गई एक सूचना में प्राधिकरण ने जवाब दिया है कि प्रदेश में अभी किसी भी तरह की आपदा प्रबंधन नीति नहीं बनाई गई है. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का यह जवाब अपने आप में बेहद गंभीर और चिंताजनक है कि इन 25 सालों में यदि उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण प्रदेश में आपदाओं के न्यूनीकरण और प्रबंधन के लिए एक ठोस नीति नहीं बन पाया है, तो उसकी कार्यशैली किस तरह से आपदाओं को लेकर रहती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
जब हमने इस बारे में आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन से पूछा, तो उन्होंने इस पर गोलमोल जवाब दिया.
उत्तराखंड में आपदाओं का लंबा चौड़ा इतिहास, आपदा प्रबंधन के बिना राज्य की परिकल्पना अधूरी: वहीं इसके अलावा साल 2000 में उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से लेकर अब तक उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन के सफर की बात करें, तो विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस उत्तराखंड राज्य का आपदाओं से हमेशा चोली दामन का साथ रहा है. उत्तराखंड में राज्य गठन से पहले की बात करें या फिर राज्य गठन से लेकर अब तक 25 साल की बात करें तो हमेशा आपदाओं ने सरकारों को चौकाया है.
हर बार आपदाओं ने दिखाया नया स्वरूप: उत्तराखंड में आपदाओं का एक लंबा चौड़ा इतिहास रहा है. बात चाहे राज्य गठन से पहले की आपदाओं में उत्तरकाशी के भूकंप और अलकनंदा जल प्रवाह रुकने की बात हो, या फिर राज्य गठन के बाद उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत के दरकने की घटना हो. 2013 की केदारनाथ आपदा हो या जोशीमठ आपदा, रैणी आपदा, सिल्क्यारा टनल हादसा या फिर इसी साल घटी धराली आपदा की बात की जाए, तो उत्तराखंड जैसे राज्य में आपदा प्रबंधन एक महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि एक ऐसा विषय है, जिसके बिना राज्य की परिकल्पना अधूरी है.
छोटे कमरे से बड़ी बिल्डिंग में गया, लेकिन आज भी ठेके पर आपदा प्रबंधन: जहां एक तरफ विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड राज्य में आपदा प्रबंधन के महत्व को राज्य गठन के बाद शुरुआती सरकारों ने बखूबी समझा था. यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य देश का पहला ऐसा राज्य था, जिसने आपदा प्रबंधन को जरूरी समझते हुए अलग से विभाग बनाया. एक जमाने में सचिवालय के एक छोटे से कमरे में चलने वाले डिजास्टर मैनेजमेंट एंड मिशन सेंटर (DMMC) ने एक पूरे विभाग के रूप में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) का रूप लिया. विभाग को एक वर्ल्ड क्लास मल्टी स्टोरी बिल्डिंग मिली.
87 करोड़ की बिल्डिंग, 53 करोड़ का अतिरिक्त बजट: देहरादून आईटी पार्क में तकरीबन 87 करोड़ की लागत से बनकर तैयार हुई यह बिल्डिंग अपने आप में बेहद अत्यधिक सिमुलेशन तकनीक से भूकंपरोधी और आपदा की स्थिति में कमांड सेंटर के रूप में काम करने के मद्देनजर बनाई गई है, जो कि वर्ल्ड बैंक की मदद से पूरे हिमालयी राज्यों में एकमात्र ऐसी बिल्डिंग है. वहीं इसके अलावा आधुनिक उपकरणों की खरीद के लिए 53 करोड़ रुपए का भी अतिरिक्त बजट आपदा प्रबंधन के लिए रखा गया है. यानी सरकार की तरफ से आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को पूरी तरह का बजट दिया जा रहा है. केंद्र की तरफ से भी बजट की कोई कमी नहीं है.
कर्मचारी भी कॉन्ट्रैक्ट पर: इन सबके बावजूद नीति नियंताओं और अधिकारी कर्मचारियों की बात करें तो आपदा प्रबंधन विभाग का यह पहलू बेहद स्याह नजर आता है. राज्य बने हुए 25 साल हो चुके हैं. अब तक आपदा प्रबंधन नीति तैयार नहीं हुई है. वहीं इसके अलावा प्राधिकरण में 80 फ़ीसदी अधिकारी कर्मचारी आज भी कॉन्ट्रैक्ट यानी ठेके पर काम कर रहे हैं. विभागीय ढांचा होने के बावजूद भी स्थाई कर्मचारी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में नियुक्त नहीं हैं. यही वजह है कि पूरा डिपार्टमेंट कॉनट्रैक्ट पर चल रहा है. ज्यादातर काम करने वाले लोगों की स्थाई नियुक्ति नहीं है.
स्थाई और समर्पित कर्मचारियों की जरूरत: प्राधिकरण द्वारा न्यूनतम कॉन्ट्रैक्ट पर लोगों को रखा जाता है, जिससे योग्यता और कुशलता एक बड़ा ड्रॉबैक प्राधिकरण के लिए बनकर सामने आता है. लोगों की जॉब सिक्योरिटी ना होना कहीं ना कहीं उनकी कार्य कुशलता पर भी असर डालता है. जानकारों का मानना है कि यदि आपदा प्रबंधन में बेहतर कार्य करना है, तो समर्पित और स्थाई अधिकारी कर्मचारियों की नियुक्ति जरूरी है.
